What could be the reasons for the failure of IVF?
आईवीएफ़ यानी कि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (In Vitro Fertilization) एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसकी मदद से बांझपन (infertility) की परेशानी से जूझ रहे दंपति को माता-पिता बनने का अवसर मिलता है। पिछले कई सालों में ऐसे दंपतियों के उपचार में बड़ी सफलता प्राप्त हुई है। इस तकनीक का सक्सेस रेट काफी ज्यादा है जिसकी वजह से इस समस्या से जूझ रहे अधिकतर लोग इसकी ओर रुख करते हैं। विकसित देशों के अलावा विकासशील देशों में भी यह तकनीक लोगों की पहली पसंद बन चुकी है जिसमें भारत देश का नाम भी शामिल है। आमतौर पर आईवीएफ के उपयोग से सकारात्मक परिणाम ही मिलते हैं लेकिन कभी-कभी लोगों के हाथ निराशा ही आती है।
आईवीएफ के फेल होने के कई कारण हो सकते हैं। इस लेख में हम इन्हीं कारणों के बारे में चर्चा करेंगे।
आईवीएफ के फेल होने के कारण:
- महिला की उम्र (Woman’s age) – जैसे ही एक महिला की उम्र बढ़ती है तो उसके अंडों की मात्रा और उनकी गुणवत्ता काफी हद तक कम हो जाती है।
- एंब्रायो की गुणवत्ता (Quality of embryo) – अगर एंब्रायो की गुणवत्ता अच्छी ना हो तो वह गर्भाशय में अच्छे से इंप्लांट नहीं हो पाता है। या फिर अगर ब्लास्टोसिस्ट (Blastocyst) की स्टेज से पहले ही भ्रूण को ट्रांसफर किया जाता है तो आईवीएफ के फेल होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है।
- अंडे और शुक्राणु की गुणवत्ता (Egg and sperm quality) – अंडे और शुक्राणु की गुणवत्ता खराब होने की स्थिति में भी आईवीएफ के फेल होने की संभावना काफी अधिक होती है।
- फर्टिलाइजेशन (Fertilization) – किसी भी कारण से अगर फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया ठीक से पूरी ना हुई हो तब भी आईवीएफ के फेल होने की संभावना काफी बढ़ जाती है।
- एंडोमेट्रियल रिसेप्टिविटी (Endometrial receptivity) – कम एंडोमेट्रियल रिसेप्टिविटी यानी कि एंडोमेट्रियल की परत की ग्रहणशीलता अच्छी ना हो तो भ्रूण अच्छे से इंप्लांट नहीं हो पाता है।
- एफएसएच का ज्यादा स्तर (High levels of FSH) – एफएसएच यानी कि फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हार्मोन का स्तर ज्यादा होने से भी आईवीएफ का सक्सेस रेट काफी घट जाता है।
- क्रोमोसोमल असामान्यताएँ (Chromosomal abnormalities) – माता-पिता में से किसी एक या फिर दोनों के क्रोमोसोम्स में असमान्यता होने से भी आईवीएफ चिकित्सा के नकारात्मक परिणाम देखे जा सकते हैं।
- इम्यूनोलॉजिकल समस्याएं (Immunological problems) – ऑटो इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम, एलर्जी, अस्थमा जैसी इम्यूनोलॉजिकल परेशानियों के होने की वजह से गर्भाशय के अंदर भ्रूण का इंप्लांटेशन होने में समस्या आती है जिसकी वजह से आईवीएफ फेल हो जाता है।
- तनाव (Tension) – अगर महिला को किसी भी प्रकार का तनाव है या वह किसी भी अन्य प्रकार की मानसिक परेशानी से जूझ रही है तो भी आईवीएफ के सफल होने की संभावना कम हो जाती है।
आईवीएफ के फेल होने पर क्या करें? (What to do when IVF fails?)
अगर किसी दंपति को आईवीएफ चिकित्सा से कोई फायदा नहीं होता है तो उसे कुछ जरूरी कदम उठाने चाहिए। ऐसे में सबसे जरूरी है कि वह अपनी सकारात्मक सोच को बनाए रखें। एक बार आईवीएफ के फेल होने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें कभी भी सफलता नहीं मिलेगी और वह माता-पिता नहीं बन पाएंगे। आजकल अच्छे आईवीएफ हॉस्पिटल, अनुभवी डॉक्टर और आधुनिक तकनीकों के सहयोग से इस चिकित्सा पद्धति के सफल होने की संभावना काफी ज्यादा होती है।सबसे पहले हमें आईवीएफ के फेल होने के कारण का पता लगाने की जरूरत होती है। उसके बाद उस कारण को खत्म करने की ओर कदम बढ़ाया जाता है। ऐसे में कुछ कदम इस प्रकार है:
- हिस्टेरोस्कोपी (Hysteroscopy) – इसमें गर्भाशय की जांच की जाती है फिर जो भी रिपोर्ट आती है उसको ध्यान में रखते हुए गर्भाशय की समस्या को दूर करने की कोशिश की जाती है। इसके साथ ही अगर सिस्ट या फाइब्रॉएड हो तो उन्हें हटाया जाता है।
- स्टिमुलेशन (Stimulation) – उत्तेजक दवाइयों की सहायता से एंडोमेट्रियम की ग्रहणशीलता को बढ़ाया जा सकता है।
- एंडोमेट्रियल रिसेप्टिविटी एरे (Endometrial Receptivity Array) – यह एक टेस्ट होता है जिसकी मदद से भ्रूण को प्रत्यारोपित करने के सही समय का पता लगाया जाता है और उसके बाद भ्रूण को ट्रांसफर किया जाता है।
- ब्लास्टोसिस्ट ट्रांसफर (Blastocyst transfer) – फर्टिलाइजेशन के पश्चात भ्रूण पांचवें दिन तक ब्लास्टोसिस्ट स्टेज में बढ़ता है और फिर जब इसे गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है तो गर्भधारण की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है।
- दवाइयां (Medicines) – अगर एंडोमेट्रियम (Endometrium) की परत काफी पतली है तो उसके विकास और रक्त प्रवाह को और बेहतर बनाने के लिए वेजाइनल सिल्डेनाफिल और एस्पिरिन जैसी दवाइयां दी जाती हैं। इसके अलावा कुछ अन्य एडवांस्ड तकनीक और आईवीएफ के सहयोग से भी आईवीएफ की सफलता की संभावना काफी बढ़ जाती है जैसे:
- आइसीएसआई (ICSI) – इंट्रासाइटोप्लास्मिक (Intracytoplasmic) स्पर्म इंजेक्शन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सबसे स्वस्थ और अच्छे स्पर्म को अंडे के साइटोप्लाज्म (Cytoplasm) में डॉक्टर के द्वारा इंजेक्ट किया जाता है।
- डोनर आईवीएफ (Donor IVF) – यदि शुक्राणु और अंडे की गुणवत्ता अच्छी नहीं है तो दोनों के साथ आईवीएफ चिकित्सा पर भी विचार किया जा सकता है। इस चिकित्सा में अगर अंडे की गुणवत्ता अच्छी नहीं है तो अंडा एक डोनर महिला से भी लिया जा सकता है या फिर शुक्राणु की गुणवत्ता खराब होने पर, पुरुष डोनर से शुक्राणु लिया जा सकता है।
अगर आप भी एक ऐसे दंपति हैं जिन्होंने आईवीएफ चिकित्सा पद्धति को चुना था लेकिन अब आप उसके फेल होने की वजह से परेशान है तो आपको क्रिस्टा आईवीएफ को चुनना चाहिए। इस फर्टिलिटी सेंटर में अनुभवी डाक्टर हैं जिन्होंने कई दंपतियों का सफल आईवीएफ ट्रीटमेंट दिया है। यहाँ आपका इलाज उन्नत मशीनों एवं तकनीकों की मदद से कम दामों पर किया जाता है। क्रिस्टा आईवीएफ पूरे भारत में 20 से ज्यादा राज्यों में अपनी सर्विस देता है।