IVF के बाद गर्भावस्था के लक्षण- जानें, क्या हो सकते हैं संकेत?

IVF के बाद गर्भावस्था के लक्षण

आई वी एफ के बाद जो औपचारिक रूप से सामने आने वाले संकेत गर्भावस्था के दौरान देखने को मिलते हैं, वे वास्तविक जीवन का आनंद तभी साकार करते हैं जब एक विवाहित जोड़ा नए सदस्य की तरफ़ कदम बढ़ाता है। लेकिन अगर किन्हीं कारणवश इनफर्टिलिटी की स्थिति उत्पन्न होती है, तो आई वी एफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) प्रक्रिया से अनेक जोड़ों को माता-पिता बनने का अवसर मिलता है। यह प्रक्रिया बड़ी ही जटिल और संवेदनशील होती है, लेकिन इस प्रक्रिया से माता-पिता बनने का सपना साकार करने में सहायता मिलती है! यह अवस्था अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, और इसी चरण में आने वाले गर्भावस्था के चरण के संकेतों को समझना और उन आधार पर अन्य लक्षणों को सही ढंग से पहचान कर उनका अन्वेषण करना भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है!

गर्भावस्था के दौरान होने वाले बदलाव  (Embryo transfer post symptoms)

गर्भावस्था के दौरान होने वाले बदलावों को समझना और पहचानना ज़रूरी है, चूँकि ये बड़ा ही संवेदनशील चरण होता है,इसलिए जोड़ों को उचित सलाह एवं मार्गदर्शन की भी आवश्यकता होती है! ताकि सही समय पर सही कदम उठाए जा सकें। चलिए, जानते हैं कि आईवीएफ प्रक्रिया के बाद गर्भावस्था के कौन-कौन से सामान्य लक्षण नजर आ सकते हैं:

1. ऐंठन का महसूस होना – इम्प्लांटेशन क्रैम्प्स:

   गर्भावस्था के प्रारंभिक चरण में जो संकेत मिलते हैं, उनमें ऐंठन का अनुभव करना एक सामान्य बात है। ऐसी स्थिति में भ्रूण गर्भाशय के अंदर खुद को स्थापित करने का प्रयास करता है, इस ऐंठन को “इम्प्लांटेशन क्रैम्प्स” के नाम से भी जाना जाता है। सामान्यतः यह ऐंठन हल्की होती है और कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक रह सकती है। इस दौरान पेट के निचले हिस्से में हल्का दर्द महसूस हो सकता है, जो आमतौर पर मासिकधर्म के दर्द से मिलता-जुलता है।

2. ब्लीडिंग का होना – स्पॉटिंग:

   यह स्थिति भी ध्यान देने वाली है, जिसमें आईवीएफ उपचार के बाद हल्की ब्लीडिंग होती है, जिसे “इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग” कहा जाता है। यह तब होता है जब भ्रूण गर्भाशय की दीवार से जुड़ता है। यह ब्लीडिंग बहुत ही हल्की होती है और इसका रंग गुलाबी या ब्राउनिश हो सकता है। यह सामान्यतः 6 से 12 दिनों के अंदर होती है और आमतौर पर कुछ घंटों से लेकर एक-दो दिनों तक ही रहती है।

3. जी मिचलाना – मॉर्निंग सिकनेस:

   गर्भावस्था के शुरुआती चरणों में जी मिचलाना या उल्टी आना एक और सामान्य लक्षण है, जिसे “मॉर्निंग सिकनेस” के नाम से जाना जाता है। यह केवल सुबह के समय नहीं होता, बल्कि दिन के किसी भी समय हो सकता है। यह स्थिति गर्भावस्था के पहले तिमाही में अधिक सामान्य होती है और हार्मोनल बदलावों के कारण होती है।

4. स्तनों में दर्द और तनाव का महसूस होना:  

   महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान हार्मोनल बदलावों के कारण स्तनों में दर्द और तनाव महसूस हो सकता है। इस स्थिति में स्तन अधिक संवेदनशील हो जाते हैं और उनका आकार भी बढ़ सकता है। यह एक सामान्य संकेत है और इसका अनुभव आईवीएफ के बाद गर्भवती महिलाओं द्वारा किया जाता है। महिलाओं को इन लक्षणों से जानकारी मिल सकती है कि उनकी गर्भावस्था में संकेतिक बदलाव जारी हैं।

5. थकान और कमजोरी का होना:

   थकान और कमजोरी महसूस होना भी आईवीएफ के बाद गर्भवती महिलाओं का एक सामान्य लक्षण है। ऊर्जा का स्तर कम होने के कारण और शरीर में हार्मोनल बदलावों से आप अधिक थका हुआ महसूस कर सकती हैं। इस स्थिति में पूरा आराम करना और पोषक आहार लेना महत्वपूर्ण है।

6. मूत्र त्याग की आवश्यकता बढ़ जाना:

   गर्भावस्था के दौरान मूत्र त्याग की आवश्यकता बढ़ जाती है। यह स्थिति भी हार्मोनल बदलावों के कारण होती है, जिससे आपके गुर्दे अधिक मूत्र का उत्पादन करते हैं। इसके साथ ही गर्भाशय का आकार बढ़ने से मूत्राशय पर दबाव पड़ता है, जिससे मूत्र त्याग की आवश्यकता अधिक महसूस होती है और आपको सामान्य से अधिक बार मूत्र त्याग के लिए जाना पड़ सकता है।

7. सूजन और ल्यूकोरिया में बदलाव – एक स्वाभाविक प्रक्रिया:

   गर्भावस्था के दौरान शरीर में सूजन आना और योनि से ल्यूकोरिया में बदलाव होना सामान्य है। यह हार्मोनल बदलावों और रक्त प्रवाह में वृद्धि के कारण होता है। इस स्थिति में योनि से सफेद या हल्का ल्यूकोरिया हो सकता है, और सूजन सामान्यतः पैर, हाथ और चेहरे में हो सकती है।

8. गर्भावस्था की पुष्टि होना:

   यह चरण अत्यंत महत्वपूर्ण है। उपचार के बाद गर्भावस्था की पुष्टि करने के लिए प्रजनन चिकित्सक आमतौर पर 12 से 14 दिनों का इंतजार करते हैं। भ्रूण के आरोपण के बाद भ्रूण को गर्भाशय की दीवार से जुड़ने में 10 दिनों से अधिक समय लग सकता है। यही कारण है कि गर्भावस्था की पुष्टि के लिए 12-14 दिनों का समय उपयुक्त माना जाता है।

9. शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्थिति का महत्व:

   आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान और उसके बाद शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक स्थिति का भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। आईवीएफ के बाद 14 दिनों का इंतजार एक महिला के लिए बहुत लंबा और तनावपूर्ण हो सकता है। इस समय के दौरान महिला का मन लगातार परिणाम के बारे में सोचता रहता है, जो तनाव का कारण बन सकता है। इस स्थिति में अपने शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।

10. भ्रूण का विकास और पुष्टि का समय – अत्यंत महत्वपूर्ण चरण:

    यह समय दो सप्ताह का होता है, जो कि अत्यधिक महत्वपूर्ण समय होता है। जब भ्रूण गर्भाशय की दीवार से जुड़ जाता है, तो उसका विकास शुरू हो जाता है और धीरे-धीरे वह एक जटिल संरचना में विकसित होता है। भ्रूण के इस जुड़ाव को “इम्प्लांटेशन” कहा जाता है, और इसमें 10 से 14 दिनों का समय लग सकता है। यही कारण है कि आईवीएफ के बाद गर्भावस्था की पुष्टि के लिए दो सप्ताह का इंतजार किया जाता है।

यह भी पढ़ें: क्या आईवीएफ का कोई साइड इफेक्ट होता है?

आईवीएफ के बाद गर्भावस्था की पुष्टि कैसे करें?

जब तक गर्भावस्था की पुष्टि न हो जाए, मन में भ्रम की स्थिति रहती है। ऐसी स्थिति में गर्भावस्था की पुष्टि के लिए प्रजनन चिकित्सक द्वारा बताए गए समय पर गर्भावस्था परीक्षण करना सबसे विश्वसनीय तरीका है। यह परीक्षण भ्रूण के गर्भाशय में सफलतापूर्वक जुड़ने के बाद ही करना चाहिए ताकि सही परिणाम मिल सकें। गर्भावस्था परीक्षण के लिए सामान्यतः रक्त परीक्षण का उपयोग किया जाता है, जो कि एचसीजी (ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रॉपिन) हार्मोन के स्तर को मापता है। यह हार्मोन गर्भावस्था के दौरान उत्पन्न होता है और इसके स्तर में वृद्धि गर्भावस्था का संकेत देती है।

उपर्युक्त जानकारी में महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान होने वाले संकेतों और लक्षणों के बारे में विस्तार से बताया गया है। महिलाएं इन संकेतों को देखकर अंदाजा लगा सकती हैं कि वे गर्भवती हुई हैं या नहीं। ये लक्षण एक सफल गर्भावस्था का संकेत दे सकते हैं और इसी समय वे अपने चिकित्सक से सलाह एवं देखभाल लेना सुनिश्चित कर सकती हैं। ऐसा करने से मन में उत्पन्न हो रहे सभी विचारों से बचा जा सकता है। लेकिन कभी-कभी झूठे लक्षण भी हो सकते हैं क्योंकि अंडाणु से ही आईवीएफ की प्रक्रिया को समझने के लिए किया जाने वाला उपचार होता है। इसलिए, किसी भी लक्षण के आधार पर अंतिम निर्णय पर पहुँचने से पहले चिकित्सक की सलाह लेना अति आवश्यक है।

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