पीसीओडी क्या है? कारण, लक्षण, इलाज और पूरी जानकारी

Medically Reviewed By

Dr. Nidhi Sehrawet

Written By Mahima Nigam

July 17, 2025

Last Edit Made By Mahima Nigam

July 17, 2025

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पीसीओडी (PCOD – Polycystic Ovarian Disease) एक सामान्य लेकिन गंभीर हार्मोनल विकार (Hormonal Disorder) है जो महिलाओं की प्रजनन प्रणाली (Reproductive System) को प्रभावित करता है। यह समस्या मुख्य रूप से अंडाशय (Ovaries) से जुड़ी होती है, जहाँ पर सामान्य से अधिक मात्रा में पुरुष हार्मोन एंड्रोजन (Androgen – Male Hormone) का निर्माण होने लगता है। इस असंतुलन के कारण अंडाशय के अंदर छोटे-छोटे सिस्ट (Cysts) यानी तरल से भरी थैलियाँ बन जाती हैं।

हर महीने महिलाओं के शरीर में अंडाणु (Egg) बनने की एक प्राकृतिक प्रक्रिया होती है जिसे ओव्यूलेशन (Ovulation) कहा जाता है। परंतु पीसीओडी से ग्रस्त महिलाओं में यह प्रक्रिया ठीक से नहीं हो पाती क्योंकि अंडाणु समय पर विकसित नहीं हो पाते या ओव्यूलेशन में रुकावट आती है। इसका असर महिला के पीरियड्स (Periods) पर भी पड़ता है, जो अनियमित (Irregular) हो सकते हैं या कई महीनों तक बंद हो सकते हैं।

पीसीओडी सिर्फ पीरियड्स या गर्भधारण (Pregnancy) की समस्या तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लंबे समय में टाइप 2 डायबिटीज़ (Type 2 Diabetes), हृदय रोग (Heart Disease), हाई ब्लड प्रेशर (High Blood Pressure), और मोटापा (Obesity) जैसी बीमारियों का कारण भी बन सकता है। कई महिलाएं इससे भावनात्मक रूप से भी प्रभावित होती हैं, जिसमें तनाव (Stress), डिप्रेशन (Depression), और आत्म-विश्वास की कमी जैसे प्रभाव शामिल हैं।

शहरीकरण, फास्ट फूड, तनावपूर्ण जीवनशैली, और फिजिकल एक्टिविटी की कमी पीसीओडी के बढ़ते मामलों के पीछे बड़े कारण हैं। यह रोग भारत में तेजी से फैल रहा है और आंकड़ों के अनुसार हर 10 में से 1 महिला इससे प्रभावित है।

इसके अतिरिक्त, कई मामलों में महिलाएं पीसीओडी के शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज कर देती हैं, जिससे बीमारी धीरे-धीरे गंभीर होती जाती है। उचित शिक्षा और जनजागरूकता की कमी भी इसके फैलने का एक बड़ा कारण है। आजकल किशोरावस्था में भी इस समस्या के मामले देखे जा रहे हैं, जो भविष्य में उनकी प्रजनन क्षमता (Fertility) को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए स्कूल और कॉलेज स्तर पर महिला स्वास्थ्य से संबंधित जागरूकता फैलाना आवश्यक है।

पीसीओडी के लक्षण (Symptoms of PCOD)

पीसीओडी के लक्षण धीरे-धीरे प्रकट होते हैं और कई बार महिलाएं इन्हें सामान्य मानकर अनदेखा कर देती हैं। लेकिन यदि इन संकेतों को समय रहते पहचान लिया जाए, तो उपचार आसान और प्रभावी हो सकता है।

  • अनियमित मासिक धर्म (Irregular Menstrual Cycle): पीसीओडी में मासिक धर्म समय पर नहीं आता, कई बार महीनों तक नहीं आता या फिर बहुत कम और हल्का आता है। कभी-कभी अत्यधिक रक्तस्राव (Heavy Bleeding) भी होता है।

  • चेहरे और शरीर पर बाल बढ़ना (Hirsutism): हार्मोनल असंतुलन के कारण चेहरे, छाती, पेट और पीठ पर पुरुषों जैसे मोटे और गहरे बाल उगने लगते हैं।
  • मुंहासे और तैलीय त्वचा (Acne and Oily Skin): विशेष रूप से ठोड़ी, जबड़े और पीठ पर बार-बार मुंहासे होना आम है।
  • बाल झड़ना (Hair Fall): सिर के बाल बहुत अधिक मात्रा में झड़ने लगते हैं और गंजापन (Baldness) तक हो सकता है।
  • वजन बढ़ना (Weight Gain): बिना किसी स्पष्ट कारण के वजन बढ़ना, खासकर पेट और कमर के आसपास।
  • थकान और मूड स्विंग्स (Fatigue and Mood Swings): हमेशा थकावट महसूस होना और छोटी-छोटी बातों पर मूड बदलना।
  • गर्भधारण में कठिनाई (Difficulty in Conceiving): ओव्यूलेशन सही से न होने के कारण महिला को गर्भधारण में दिक्कत होती है।
  • काले पैचेस (Dark Patches): गर्दन, कांख, और जांघों के आसपास त्वचा काली पड़ सकती है – इसे एकान्थोसिस नाइग्रिकन्स (Acanthosis Nigricans) कहते हैं।

इन लक्षणों को नजरअंदाज करना बीमारी को और बढ़ा सकता है। इसलिए नियमित जांच और समय पर डॉक्टर से सलाह लेना आवश्यक है। एक बार पीसीओडी डायग्नोज़ हो जाए, तो महिला को अपनी जीवनशैली में बदलाव और उपचार शुरू करने में देरी नहीं करनी चाहिए।

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रोकथाम और सुझाव (Prevention and Tips for PCOD)

  • समय पर निदान (Timely Diagnosis): यदि मासिक धर्म अनियमित हो या चेहरे पर अचानक बाल बढ़ने लगें, तो तुरंत जाँच कराएं।
  • शारीरिक सक्रियता (Physical Activity): हर दिन कम से कम 30 मिनट सक्रिय रहने की आदत डालें। तेज़ चलना, योग और हल्का व्यायाम भी लाभदायक होता है।
  • स्वस्थ वजन बनाए रखें (Maintain Healthy Weight): मोटापा हार्मोन असंतुलन को बढ़ाता है, इसलिए वजन नियंत्रित रखें। नियमित वजन जांचना भी मददगार हो सकता है।
  • नियमित जांच (Regular Checkups): ब्लड शुगर, हार्मोन और अल्ट्रासाउंड जैसी जांच समय-समय पर कराते रहें ताकि किसी भी असामान्यता को शुरुआती अवस्था में पकड़ा जा सके।
  • तनाव न लें (Avoid Stress): मानसिक शांति भी शारीरिक स्वास्थ्य जितनी ही जरूरी है। योग, ध्यान, और मनपसंद गतिविधियाँ जैसे संगीत सुनना या पुस्तक पढ़ना तनाव कम करने में मदद करती हैं।
  • आयुर्वेदिक और प्राकृतिक उपाय (Ayurvedic and Natural Remedies): त्रिफला, अशोक घनवटी और शतावरी जैसी आयुर्वेदिक औषधियाँ पीसीओडी के लक्षणों को कम करने में सहायक मानी जाती हैं। हालांकि इनका सेवन करने से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
  • शिक्षा और जागरूकता (Education and Awareness): महिलाओं को उनके शरीर, हार्मोनल स्वास्थ्य और मासिक धर्म के बारे में उचित जानकारी देना पीसीओडी को रोकने का पहला कदम हो सकता है।

पीसीओडी और आहार (PCOD and Diet)

पीसीओडी से पीड़ित महिलाओं के लिए आहार का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह हार्मोनल बैलेंस को नियंत्रित करने और वजन घटाने में सहायता करता है। एक संतुलित और पौष्टिक आहार अपनाकर कई लक्षणों को कम किया जा सकता है।

  • कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले खाद्य पदार्थ (Low GI Foods): साबुत अनाज (whole grains), दलिया, जौ, क्विनोआ जैसी चीज़ें इंसुलिन लेवल को नियंत्रित करने में मदद करती हैं।
  • फाइबर से भरपूर आहार: हरी सब्जियाँ, फल, फलियों और बीन्स का सेवन पाचन को ठीक रखता है और भूख को नियंत्रित करता है।
  • प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ: अंडा, दूध, दही, पनीर, दालें और नट्स शरीर को ऊर्जा देते हैं और वजन को नियंत्रित रखते हैं।
  • परिष्कृत शर्करा और प्रोसेस्ड फूड से परहेज: मिठाइयाँ, डिब्बाबंद स्नैक्स, बेकरी आइटम्स और सॉफ्ट ड्रिंक्स हार्मोन असंतुलन को बढ़ा सकते हैं।
  • स्वस्थ वसा: जैतून का तेल (olive oil), नारियल तेल (coconut oil), और एवोकाडो जैसे स्रोत हृदय स्वास्थ्य और हार्मोनल बैलेंस के लिए फायदेमंद हैं।
  • पर्याप्त पानी और हाइड्रेशन: दिन में कम से कम 8–10 गिलास पानी पिएं ताकि शरीर डिटॉक्स हो सके।
  • कैफीन और एल्कोहल से बचें: अत्यधिक कैफीन और शराब हार्मोनल असंतुलन को और खराब कर सकते हैं।

आहार में बदलाव धीरे-धीरे लेकिन लगातार करें। एक न्यूट्रिशनिस्ट से परामर्श लेना फायदेमंद हो सकता है ताकि आपकी विशेष आवश्यकताओं के अनुसार डाइट प्लान तैयार किया जा सके।

पीसीओडी और गर्भधारण (PCOD and Fertility)

पीसीओडी से पीड़ित महिलाओं को गर्भधारण करने में कई बार कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसका मुख्य कारण होता है अनियमित ओव्यूलेशन या कभी-कभी ओव्यूलेशन का बिल्कुल न होना। हालांकि सही उपचार, जीवनशैली में बदलाव और डॉक्टर की सलाह से पीसीओडी में भी स्वस्थ गर्भधारण संभव है।

  • ओव्यूलेशन को ट्रैक करें: पीसीओडी में ओव्यूलेशन अनियमित होता है, इसलिए ओव्यूलेशन किट या बेसल बॉडी टेम्परेचर की मदद से उपयुक्त समय पहचानना जरूरी होता है।
  • डॉक्टर की मदद लें: कई बार क्लोमिफीन साइट्रेट (Clomiphene Citrate), लेट्रोज़ोल (Letrozole) जैसी दवाएं अंडाणु बनने में मदद करती हैं। यदि दवाओं से परिणाम न मिलें तो आईयूआई (IUI) या आईवीएफ (IVF) जैसे विकल्प अपनाए जा सकते हैं।
  • हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं: वजन को नियंत्रित रखना, नियमित व्यायाम करना और संतुलित आहार लेना हार्मोन संतुलन को बनाए रखने में सहायक होते हैं।
  • तनाव न लें: तनाव से हार्मोन असंतुलन और अधिक बिगड़ सकता है। मेडिटेशन, योग और परामर्श मददगार हो सकते हैं।

ध्यान रखें कि हर महिला की स्थिति अलग होती है। कुछ महिलाएं जल्दी गर्भधारण कर लेती हैं जबकि कुछ को समय और उपचार की आवश्यकता होती है। इसलिए धैर्य और विशेषज्ञ की सलाह बेहद जरूरी है।

पीसीओडी और मानसिक स्वास्थ्य (PCOD and Mental Health)

पीसीओडी का असर सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा पड़ता है। हार्मोनल असंतुलन के कारण महिलाओं में चिंता (Anxiety), अवसाद (Depression), और आत्म-संकोच जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं। जब कोई महिला बार-बार अनियमित पीरियड्स, वजन बढ़ने, या गर्भधारण की कठिनाई से गुजरती है, तो यह उसकी आत्म-छवि और आत्म-विश्वास को प्रभावित कर सकता है।

इसके अलावा, चेहरे पर बाल उगना या बाल झड़ना जैसी समस्याएँ महिलाओं को सामाजिक रूप से असहज बना सकती हैं। कई बार परिवार और समाज से मिलने वाला दबाव भी मानसिक बोझ बढ़ा देता है। ऐसे में महिलाओं को यह समझना चाहिए कि वे अकेली नहीं हैं – लाखों महिलाएं इस स्थिति का सामना कर रही हैं।

इस मानसिक बोझ को कम करने के लिए नियमित रूप से काउंसलिंग लेना, करीबी दोस्तों और परिवार से बातचीत करना, और आवश्यकता पड़ने पर मनोवैज्ञानिक (Psychologist) की मदद लेना बेहद जरूरी है। योग, मेडिटेशन, और गहरी साँसों की एक्सरसाइज़ भी मानसिक तनाव को कम करने में मददगार हो सकती हैं।

पीसीओडी के लिए घरेलू उपाय (Home Remedies for PCOD)

वैज्ञानिक इलाज के साथ-साथ कुछ घरेलू उपाय भी पीसीओडी के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकते हैं। हालांकि ये उपाय बीमारी का पूर्ण इलाज नहीं हैं, लेकिन ये जीवनशैली सुधारने में सहयोगी हो सकते हैं:

  • मेथी दाना (Fenugreek Seeds): रोज़ सुबह भिगोए हुए मेथी दाने खाने से इंसुलिन का स्तर नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
  • अश्वगंधा (Ashwagandha): यह एक प्राकृतिक एडेप्टोजेन है जो तनाव कम करने और हार्मोन संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
  • दालचीनी (Cinnamon): यह मेटाबॉलिज्म को तेज करने और ब्लड शुगर कंट्रोल करने में उपयोगी है। आप इसे चाय या गर्म पानी में मिलाकर ले सकती हैं।
  • अदरक और शहद: ये दोनों एंटी-इंफ्लेमेटरी होते हैं और हार्मोन संतुलन को सपोर्ट करते हैं।
  • नीम और तुलसी: ये शरीर को डिटॉक्स करने और इम्यून सिस्टम को मजबूत करने में मदद करते हैं।

पीसीओडी का उपचार (Treatment for PCOD)

पीसीओडी का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों को प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता है। उपचार का उद्देश्य ओव्यूलेशन को नियमित करना, हार्मोन संतुलन बनाए रखना, और दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिमों को कम करना होता है।

  1. दवाइयाँ:
    • मासिक धर्म नियमित करने के लिए डॉक्टर हार्मोनल गोलियाँ (Birth Control Pills) देते हैं।
    • ओव्यूलेशन को प्रेरित करने के लिए क्लोमिफीन साइट्रेट (Clomiphene Citrate), लेट्रोज़ोल आदि का प्रयोग होता है।
    • मेटफॉर्मिन (Metformin) जैसे इंसुलिन सेंसिटाइज़र टाइप 2 डायबिटीज़ के जोखिम को कम करने में मदद करते हैं।
  2. जीवनशैली में बदलाव:
    • नियमित व्यायाम और वजन कम करने से पीसीओडी के लक्षणों में काफी सुधार आता है।
    • लो-कार्ब डाइट और फाइबर-युक्त भोजन लेना फायदेमंद है।
  3. सर्जरी:
  4. यदि दवाओं से असर न हो तो डॉक्टर लैप्रोस्कोपिक ओवेरियन ड्रिलिंग (LOD) नामक एक सर्जरी की सलाह देते हैं। यह ओव्यूलेशन को सुधारने में सहायक होती है।

  5. कॉस्मेटिक उपचार:
  6. अत्यधिक बालों की समस्या, मुंहासों या त्वचा से जुड़ी दिक्कतों के लिए कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट जैसे लेज़र या क्रीम्स का उपयोग किया जा सकता है।

  7. क्रिस्टा आईवीएफ में सलाह और देखभाल:
  8. यदि आप विशेषज्ञ सलाह चाहते हैं तो Crysta IVF एक विश्वसनीय विकल्प हो सकता है। यहाँ अनुभवी फर्टिलिटी विशेषज्ञों की टीम होती है जो प्रत्येक केस को व्यक्तिगत रूप से समझती है और उसी अनुसार उपचार योजना बनाती है। Crysta IVF में परामर्श के दौरान महिला की पूरी मेडिकल हिस्ट्री का विश्लेषण किया जाता है, ज़रूरी परीक्षण किए जाते हैं और फिर उपचार के लिए एक स्पष्ट, वैज्ञानिक और सहानुभूति-पूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जाता है।

Crysta IVF की सुविधाएँ:

  • अनुभवी डॉक्टर और स्टाफ
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  • मानसिक और भावनात्मक सहयोग देने वाली टीम

हर महिला की शारीरिक स्थिति अलग होती है, इसलिए डॉक्टर से परामर्श लेकर ही उपचार की योजना बनाना चाहिए। नियमित फॉलो-अप और लक्षणों पर नज़र रखना उपचार को सफल बनाता है।

पीसीओडी एक आम लेकिन गंभीर समस्या है जो न सिर्फ महिला के हार्मोन और मासिक धर्म को प्रभावित करती है, बल्कि उसके मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक जीवन पर भी प्रभाव डालती है। अच्छी बात यह है कि सही जानकारी, जीवनशैली में बदलाव, डॉक्टर की सलाह और मानसिक समर्थन से इस स्थिति को नियंत्रण में रखा जा सकता है।

महिलाओं को अपने शरीर के संकेतों को समझना चाहिए और किसी भी असामान्यता को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। आज की जागरूक महिला अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देती है, और पीसीओडी के साथ भी एक स्वस्थ, खुशहाल और सफल जीवन जी सकती है।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

क्या पीसीओडी और पीसीओएस एक ही हैं?

नहीं, दोनों में अंतर है। पीसीओडी एक सामान्य स्थिति है जबकि पीसीओएस अधिक जटिल और गंभीर मानी जाती है।

क्या पीसीओडी में गर्भधारण संभव है?

हाँ, सही उपचार और जीवनशैली में सुधार से पीसीओडी में भी सफलतापूर्वक गर्भधारण किया जा सकता है।

क्या पीसीओडी पूरी तरह से ठीक हो सकता है?

इसका कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन इसे नियंत्रित किया जा सकता है ताकि लक्षणों का असर कम हो।

क्या पीसीओडी सिर्फ मोटी महिलाओं को होता है?

नहीं, यह दुबली-पतली महिलाओं को भी हो सकता है। वजन केवल एक जोखिम कारक है।

क्या योग और आयुर्वेद से लाभ होता है?

हाँ, योग, ध्यान और आयुर्वेदिक उपचार सहायक हो सकते हैं लेकिन उन्हें डॉक्टर की सलाह के साथ लेना चाहिए।

पीसीओडी में कौन-से टेस्ट जरूरी होते हैं?

हार्मोनल ब्लड टेस्ट, शुगर टेस्ट और पेल्विक अल्ट्रासाउंड आमतौर पर किए जाते हैं।

क्या पीसीओडी अनुवांशिक होता है?

हाँ, यदि परिवार में किसी महिला को यह समस्या रही है तो दूसरे सदस्यों में इसके होने की संभावना बढ़ जाती है।

Disclaimer

As per the "PCPNDT" (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994, Gender Selection and Determination is strictly prohibited and is a criminal offense. Our centers strictly do not determine the sex of the fetus. The content is for informational and educational purposes only. Treatment of patients varies based on his/her medical condition. Always consult with your doctor for any treatment.

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