What is the process of IVF with donor embryos?
जैसे-जैसे महिला की उम्र बढ़ती है उसके शरीर में कई बदलाव आते जाते हैं जैसे आंखों का कमजोर होना, बालों का गिरना, सफेद होना, आदि। इसी के साथ बढ़ती उम्र के कारण महिलाओं की प्रजनन क्षमता भी कम हो जाती है। इसलिए बढ़ती उम्र के कारण उसका मां बन पाना भी मुश्किल हो जाता है। ऐसे में महिला गर्भधारण करने के लिए डोनर भ्रूण के साथ आईवीएफ ( IVF ) जैसी आधुनिक तकनीक का सहारा ले सकती है।
महिला की उम्र बढ़ने की वजह से उसके अंडाशय में अंडों की मात्रा और गुणवत्ता दोनों में कमी आ जाती है। ऐसे में महिला का गर्भ धारण करना केवल मुश्किल नहीं होता बल्कि गर्भपात की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं। उम्र बढ़ने के साथ ओवेरियन रिजर्व कम हो जाता है जो बांझपन का कारण बन सकता है। अगर प्रयास करने पर भी गर्भधारण नहीं हो रहा है तो ऐसे में असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्निक (एआरटी) की मदद से गर्भ धारण किया जा सकता है। जिसके लिए डोनर भ्रूण जैसी तकनीक का सहारा लिया जा सकता है।
आईवीएफ की प्रक्रिया IVF Process में महिला के अंडों को बाहर निकालकर पुरुष के शुक्राणु के साथ लैब में फर्टिलाइज किया जाता है। फर्टिलाइज होने के बाद तैयार हुए भ्रूण को महिला के गर्भाशय में ट्रांसफर करते हैं। लेकिन अगर महिला के अंडों की गुणवत्ता अच्छी ना हो तो ऐसे में गर्भधारण के लिए डोनर भ्रूण के साथ आईवीएफ की प्रक्रिया का सहारा लिया जा सकता है।
आईवीएफ की प्रक्रिया में अंडों को महिला डोनर के अंडाशय से लिया जाता है। डोनर महिला की जानकारी गुप्त रखी जाती है। अंडे लेने से पहले उसकी पूरी जांच की जाती हैं। फिर उन अंडों को पुरुष साथी के शुक्राणु के साथ फर्टिलाइज किया जाता है, फर्टिलाइज होने के बाद भ्रूण को महिला के गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है। उसके बाद का गर्भावस्था पूरी तरह से सामान्य गर्भावस्था की तरह ही होता है।
डोनर भ्रूण के साथ आईवीएफ की प्रक्रिया में नीचे बताएं गए स्टेप शामिल है:-
भ्रूण प्राप्तकर्ता का मूल्यांकन (Evaluation of embryo recipient)
भ्रूण प्राप्त करने वाले दंपति के पूरे प्रजनन इतिहास का मूल्यांकन करना चाहिए। एचआईवी, हेपेटाइटिस, सिफलिस और दूसरे प्रजनन अंग से जुड़े संक्रमण जैसे क्लेमाइडिया और टीबी के लिए जरूरी सेरोलॉजिकल स्क्रीनिंग जांच अगर जरूरी है तो की जानी चाहिए। किसी भी तरह की असमान्यताओं को निर्धारित करने के लिए पेल्विक जांच के साथ पूरी सामान्य शारीरिक जांच की जानी चाहिए, जो गर्भावस्था के परिणाम पर असर डाल सकती हैं।
किसी भी तरह के गर्भाशय या अंडाशय दोषों जैसे रसोली, मस्सा, हाइड्रोसालपिंक्स, ओवेरियन सिस्ट, यूटेराइन मेलफोरमेशंस होने का पता लगाने के लिए 2D अल्ट्रासोनोग्राफी की जानी चाहिए और अगर जरूरी हो तो 3D अल्ट्रासोनोग्राफी भी की जानी चाहिए। 40 वर्ष से ज्यादा उम्र की महिला है तो कार्डियक फंक्शन का मूल्यांकन किया जाना चाहिए और दंपति का मानोवैज्ञानिक मूल्यांकन भी करना चाहिए।
भ्रूण डोनर का मूल्यांकन और चयन (Embryo donor evaluation and selection)
भ्रूण डोनर कानूनी रूप से व्यस्क होना चाहिए। उसकी आयु 21 से 34 वर्ष के बीच और उनका कम से कम 3 साल का एक जीवित बच्चा होना चाहिए। अगर डोनर की उम्र 34 साल से ज्यादा है तो यह प्राप्तकर्ता को बताना चाहिए और इससे गर्भावस्था पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में भी बताना चाहिए। निजी चिकित्सकीय इतिहास का मूल्यांकन जैसे योन इतिहास, नशीले पदार्थों का सेवन, पारिवारिक बीमारी का इतिहास और मनोवैज्ञानिक इतिहास। डोनर की यौन संचारित रोगों की पहचान के लिए जांच की जानी चाहिए ताकि प्राप्तकर्ता के स्वास्थ्य को कोई खतरा ना हो। अगर डोनर फिट है और सभी जरूरी जांच की जा चुकी हो तो डोनर को कुछ फोनोटाइपिक और रक्त विशेषताओं आदि के आधार पर प्राप्तकर्ता को सौंपा जाता है।
डोनर का ओवेरियन स्टीमुलेशन (Donor’s Ovarian Stimulation)
भ्रूण डोनर मानक प्रोटोकॉल के अनुसार ओवेरियन स्टीमुलेशन के लिए हार्मोनल उपचार से गुजरता है।
डोनर का उसाइट रिट्रीवर (donor’s oocyte retriever)
एक बार ओवरी में फॉलिकल्स सही आकार में पहुंच जाते हैं तब ट्रिगर दवा अंतिम उसाइट परिपक्वता और ओव्यूलेशन के लिए दी जाती है। ट्रिगर के बाद उसाइट रिट्रीवर होने पर अंडे प्राप्त करने के लिए सही समय पर ऐनेस्थिसिया दिया जाता है।
प्राप्तकर्ता में एंडोमेट्रियल तैयारी (Endometrial preparation in the recipient)
इस प्रक्रिया में हार्मोनल उपचार शामिल है जो भ्रूण आरोपण के लिए प्राप्तकर्ता के एंड्रोमेट्रियल (आंतरिक गर्भाशय गुहा जहां भ्रूण प्रत्यारोपित होता है) को तैयार करता है।
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन और भ्रूण विकास (Endometrial preparation in the recipient)
वीर्य का सैंपल शुक्राणु दाता से प्राप्त किया जाता है। ताजा भ्रूण के निर्माण के लिए सबसे अच्छे शुक्राणु का चयन सैंपल में से किया जाता है और इससे (इंट्रा साइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन) तकनीक के माध्यम से उसाइट में इंजेक्ट किया जाता है। अधिक इंप्लांटेशन सफलता दर प्राप्त करने के लिए ब्लास्टोसिस्ट स्टेज तक भ्रूण को विकसित किया जाता है।
प्राप्तकर्ता में भ्रूण ट्रांसफर (Embryo transfer to recipient)
इसके लिए या तो अंडादाता और शुक्राणु दाता Sperm Donor से बनाए गए ताजा भ्रूणों या दाताओं से लेकर पूर्व में क्रायोप्रिजर्व किए गए भ्रूण या दंपति जो निसंतानता के उपचार से गुजर रहे हैं अगर वह मापदंडों को पूरा कर ले तो उनके भ्रूणों का इस्तेमाल किया जाता है। भ्रूण को एक कैथेटर में रखकर अल्ट्रासाउंड मार्गदर्शन में प्राप्तकर्ता के गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है।
गर्भावस्था परीक्षण (Pregnancy test)
गर्भावस्था का परिणाम सकारात्मक है या नकारात्मक यह जांचने के लिए रक्त में एचसीजी के स्तर को ट्रांसफर के कुछ दिनों बाद रक्त गर्भावस्था जांच (बीटाएचसीजी) के माध्यम से मापा जाता है। एचसीजी के स्तर के आधार पर इस प्रक्रिया को दोहराया जा सकता है और फिर मरीज को अल्ट्रासाउंड द्वारा पांचवे या छठे सप्ताह में गर्भावस्था के मूल्यांकन और तारीख के निर्धारण के लिए बुलाया जाता है। प्राप्तकर्ता को गर्भावस्था के 12 सप्ताह तक अपने फर्टिलिटी विशेषज्ञ द्वारा हार्मोनल सप्लीमेंट जारी रखने की सलाह दी जा सकती है।
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