The importance of having a conversation about infertility
बांझपन यानि इनफर्टिलिटी (Infertility) कई दंपतियों के जीवन की एक बड़ी समस्या है जिसके कारण वह माता-पिता बनने की खुशी पाने में असमर्थ हैं। आज के समय में जब यह बांझपन की समस्या आम हो गई तो इसके बारे में बातचीत करना बहुत महत्वपूर्ण है। इस विषय पर बातचीत करने का मकसद इस समस्या से जूझ रहे लोगों को उनकी परेशानी के हल से अवगत कराना है।
माँ बनना एक औरत के लिए सौभाग्य की बात मानी जाती हैं। लेकिन आज की आधुनिक जीवन शैली और कई दूसरे कारणों के चलते महिलाओं में बांझपन की समस्या बढ़ रही है। अगर कोई महिला 12 महीने से अधिक समय तक कोशिश करने के बाद भी माँ नहीं बन पा रही है तो इसका मतलब है कि वह महिला बांझपन की समस्या का शिकार है। डब्ल्यूएचओ WHO के अनुमान के मुताबिक, भारत में बांझपन से पीड़ित महिलाओं की संख्या 9% से 16.8% के बीच है।
बांझपन की समस्या को अक्सर महिलाओं की समस्या के रूप में देखा जाता है। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि कई बार बांझपन की समस्या महिला में नहीं पुरुष में भी हो सकती हैं। भारत के पुरुष प्रधान समाज में गर्भावस्था और उससे जुड़े मुद्दे महिलाओं के साथ ही जुड़े रहे हैं। जब एक महिला गर्भवती नहीं होती है तो पुरुष की शारीरिक कमियों पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। लेकिन कमी पुरुष में भी हो सकती हैं। हमारे समाज में पुरुष बांझपन (Male Infertility) की जांच करवाने में थोड़ा झिझकते हैं। अगर कोई महिला गर्भधारण करने में असमर्थ है तो यह संतान हीनता पुरुष और महिला दोनों के हार्मोन विकारों के कारण हो सकती हैं। लेकिन ज्यादातर मामलों में महिलाओं को ही दोषी माना जाता है। बांझपन के लिए पुरुष और महिला दोनों बराबर जिम्मेदार होते हैं।
बांझपन से जूझने के लिए बातचीत का महत्व (The importance of conversation for battling infertility)
अगर कोई महिला बांझपन से पीड़ित है तो वो दूसरे लोगों से बात करके अपने को थोड़ा खुश रखने की कोशिश कर सकती है। ऐसी महिला अपने रिशतेदारों, डॉक्टर, और ऐसी कुछ महिलाओं से बात कर सकती है जो इस समस्या का इलाज करवाकर इसे हल कर चुकी हैं। आप इनसे इसके इलाज के बारे में बात कर सकते हैं। आपको पता चलेगा कि इसके कई तरह के इलाज मौजूद हैं और ये कोई इतनी बड़ी परेशानी नहीं है जितनी आपको महसूस होती है। ऐसे में आपका तनाव थोड़ा कम हो जाएगा और आप अपने माँ बनने को लेकर थोड़ा सकारात्मक हो जाएंगी।
बांझपन की समस्या एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। एक्सपर्ट के अनुसार महिलाओं में इस समस्या के कई कारण हो सकते हैं जैसे ओव्यूलेशन डिसऑर्डर, फैलोपियन ट्यूब में क्षति, एंडोमेट्रियोसिस, यूट्रस या सर्विक्स से जुड़ी समस्याएं आदि। एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर समय पर लक्षणों की पहचान करके इलाज करा लिया जाए तो इस बांझपन की समस्या को ठीक किया जा सकता है। आइए बांझपन के लक्षणों को जानते हैं जो इस समस्या की ओर इशारा करते हैं:
एंडोमेट्रियोसिस (Endometriosis)
एंडोमेट्रियोसिस एक ऐसी समस्या है जिसमें महिला के अंदर पाए जाने वाला टिश्यू बढ़कर गर्भाशय के बाहर फैलने लगता है। यह टिश्यू अंडाशय, फैलोपियन ट्यूब या यूट्रस के बाहरी हिस्से में और दूसरे हिस्सों में फैल सकता है। Endometriosis एंडोमेट्रियोसिस होने पर पीरियड के समय काफी तेज दर्द होता है। एंडोमेट्रियोसिस के कुछ दूसरे लक्षण भी हैं:- अनियमित पीरियड्स या स्पॉटिंग, क्रॉनिक पेल्विक दर्द, मल त्याग करने में दर्द, सेक्स के समय दर्द, पीठ दर्द, थकान, मतली आदि।
अनियमित पीरियड्स (Irregular Periods)
पीरियड्स मिस होने या अनियमित पीरियड की वजह से ओव्यूलेशन नियमित तौर पर नहीं हो पाता है जो बांझपन का एक कारण है।
पीरियड्स के दौरान रक्त (Blood during periods)
पीरियड्स के शुरुआत में आमतौर पर रक्त चमकदार लाल रंग का होता है और अगले कुछ दिनों में गहरा हो सकता है। अगर आपके पीरियड्स का रक्त सामान्य से हल्का या पीरियड्स के शुरुआती दिनों में बहुत गहरा है तो यह भी बांझपन का संकेत हो सकता है।
मोटापा (Obesity)
मोटापे से पीड़ित महिलाओं में गर्भधारण करने की संभावना कम होती है और गर्भावस्था के समय समस्याएं भी ज्यादा होती हैं।
अन्य समस्याएं (Other Problems)
पीसीओएस, समय से पहले मेनोपोज़, कैंसर, ओवरीज या फैलोपियन को क्षति आदि समस्याएं बांझपन का कारण हो सकती हैं।
बांझपन की समस्या के कारण का पता लगाने के लिए कई तरह की जांच भी कराई जाती हैं जैसे ओव्यूलेशन टेस्ट, हार्मोनल टेस्ट, हिस्टेरोसल पिनोग्राफी, ओवेरियन रिज़र्व टेस्ट, थायरॉयड और पिट्यूटरी हार्मोन की जांच, इमेजिंग टेस्ट आदि। इन जांचों को कराने के बाद बांझपन का कारण पता लगाकर इसे दूर करने के लिए सही इलाज के विकल्पों को चुना जा सकता है।
इनमें से एक विकल्प आईवीएफ यानि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन भी है: यह गर्भधारण करने की एक कृत्रिम प्रक्रिया है। यह तकनीक उन दंपतियों के लिए वरदान साबित हुई है जो इस बांझपन की समस्या के कारण संतान सुख पाने में असमर्थ हैं। इस तकनीक से जन्मे बच्चों को टेस्ट ट्यूब बेबी कहा जाता है। आज के आधुनिक युग में तो इस आईवीएफ की मांग लगातार बढ़ रही है।
इस प्रक्रिया में अंडों को महिला के गर्भ से बाहर निकालकर पुरुष के स्पर्म के साथ निषेचित किया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया इनक्यूबेटर के अंदर होती है और इस प्रक्रिया में लगभग तीन दिन का समय लग जाता है। भ्रूण के पर्याप्त विकास के बाद इसे वापस महिला के गर्भ में पहुंचा दिया जाता है। इस प्रक्रिया के करने के बाद 12 से 15 दिनों तक महिला को आराम करने की सलाह दी जाती है। उसे किसी भी तरह के तनाव से मुक्त रहने के लिए कहा जाता है ताकि यह प्रक्रिया सफल रहे और वह महिला गर्भधारण कर सके।
क्रिस्टा आईवीएफ भारत देश के सबसे बढ़िया आईवीएफ सेंटर (IVF Centre) में से एक है। यहाँ पर कई दंपति अपनी परेशानी लेकर आए हैं और उन्हें उस समस्या का समाधान मिला है। जैसे ही आप इस सेंटर में आते हैं तो सबसे पहले डॉक्टर आपसे खुलकर बात करते हुए आपकी पूरी समस्या को जानने की कोशिश करते हैं। उसके बाद वो आपका इलाज शुरू करते हैं। सभी डॉक्टर काफी अनुभवी है और सकारात्मक परिणाम देने के लिए जाने जाते हैं।